टिकट दावेदारों का राजस्थान में घमासान : 7 सीटों पर हो रहे हैं उपचुनाव

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मीनेष चन्द्र मीना
हैलो सरकार ब्यूरो प्रमुख
जयपुर। राजस्थान प्रदेश में जल्दी ही 7 विधानसभा की सीटों पर उपचुनावों की अधिसूचना निर्वाचन आयोग कभी भी जारी कर सकता है।
गौरतलब है कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर चुनाव के बाद इलेक्शन कमीशन इस सप्ताह महाराष्ट्र और झारखंड के साथ देशभर में खाली हुई विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा कर सकता है। इसमें राजस्थान की 7 विधानसभा सीटें भी शामिल हैं।


बीजेपी का बड़ा आत्मविश्वास :-
आपको बता दें, प्रदेश में अभी तक उपचुनावों में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है। हरियाणा चुनाव के परिणाम से पहले तक बीजेपी की राह मुश्किल दिख रही थी। लेकिन, अब हरियाणा में जीत के बाद पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ नजर आ रहा है। प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया को लेकर भी बीजेपी आगे चल रही है। पार्टी ने हर सीट पर 3 से 5 प्रत्याशियों का पैनल तैयार करके केंद्रीय नेतृत्व को भिजवा दिया है। वहीं, कांग्रेस भी हर सीट पर प्रत्याशी चयन को लेकर रायशुमारी कर चुकी है।


दौसा : अपना दमखम दिखाएंगी भाजपा :-
दौसा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के मुरारी लाल मीणा सांसद बन जाने के बाद दोसा विधानसभा क्षेत्र की सीट खाली हो गई, जिसके उपचुनाव होने हैं। यहां भाजपा विधानसभा उपचुनाव में अपनी खोई हुई साख हासिल करने की कोशिश करेगी। वहीं, कांग्रेस फिर से जीतकर अपने राजनीतिक वर्चस्व को कायम रखने की कोशिश करेगी।
भाजपा के संभावित उम्मीदवार :-
शंकरलाल शर्मा : बीजेपी दौसा सीट पर एक बार फिर ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेल सकती है। ब्राह्मण बीजेपी का कोर वोट बैंक माना जाता है। इस सीट पर ब्राह्मण वोटरों की संख्या भी काफी है। यही फैक्टर 2023 में प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक शंकरलाल शर्मा के पक्ष में नजर आ रहे हैं।
जगमोहन मीणा : कद्दावर नेता और मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा भी संभावित प्रत्याशियों में शामिल हैं। किरोड़ी ने लोकसभा चुनाव में भी अपने भाई के लिए टिकट मांगा था। एसटी वोटर भी इस सीट पर निर्णायक भूमिका में हैं।
नंदलाल बंशीवाल : अगर बीजेपी ब्राह्मण और एसटी की बजाय एससी पर दांव खेलती है तो पूर्व विधायक नंदलाल बंशीवाल यहां से प्रत्याशी हो सकते हैं। जनरल सीट होने से पहले नंदलाल बंशीवाल दौसा से दो बार विधायक रह चुके हैं।

लेकिन मजे की बात है कि अगर पार्टी एक परिवार एक टिकट का नियम यहां लागू करती है तो जगमोहन मीणा और नंदलाल बंशीवाल दौड़ में पिछड़ सकते हैं। जगमोहन के भाई किरोड़ी और भतीजा राजेंद्र दोनों विधायक हैं। वहीं नंदलाल बंशीवाल के भतीजे विक्रम बंशीवाल भी सिकराय से विधायक हैं।
कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार :-
सविता-निहारिका मीणा : कांग्रेस इस सीट पर मुरारी लाल मीणा की पत्नी सविता और बेटी निहारिका मीणा के नाम पर विचार कर रही है।
जीआर खटाणा : सचिन पायलट के करीबी और पूर्व विधायक जीआर खटाणा भी दौसा से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि इसको लेकर अंतिम फैसला पार्टी स्तर पर किया जाएगा।
नरेश मीणा : कांग्रेस में राजस्थान यूनिवर्सिटी के महासचिव रहे नरेश मीणा भी प्रमुख दावेदारों में से एक हैं। विधानसभा चुनाव में नरेश ने बारां जिले की छबड़ा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़कर 44 हजार वोट हासिल किए थे। सचिन पायलट कैंप से नजदीकी की वजह से नरेश का नाम दौसा से एक बार फिर चर्चा में है। अगर दौसा से टिकट नहीं मिलता है तो नरेश मीणा को देवली-उनियारा सीट पर भी शिफ्ट किया जा सकता है।
संदीप शर्मा : युवा नेता संदीप शर्मा भी टिकट के दावेदारों में से एक हैं। ब्राह्मण चेहरे के तौर पर कांग्रेस उन पर दांव खेल सकती है। पायलट के खास है और कई पदों पर रहे हैं। NSUI में प्रमुख नेता के रूप में पहचान रही है।


झुंझुनूं : बीजेपी किसी भी प्रकार की चूक करना नहीं चाहती :-
राजस्थान प्रदेश में झुंझुनूं सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है। इस सीट पर पिछले चार चुनावों से कांग्रेस जीत रही है। झुंझुनूं लोकसभा सीट से जीत कर कांग्रेस के विधायक बृजेंद्र ओला संसद पहुंच चुके हैं। उपचुनाव में कांग्रेस अपने मजबूत किले को बचाने के लिए एक बार फिर ओला परिवार से टिकट दे सकती है। वहीं बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव में हुई गलती को सुधार सकती है।
बीजेपी के संभावित उम्मीदवार :-
बबलू चौधरी : पिछले चुनाव में बीजेपी ने बबलू चौधरी को यहां से प्रत्याशी बनाया था। हालांकि वे हार गए थे। इस बार भी बबलू चौधरी संभावित उम्मीदवारों में शामिल हैं।
राजेंद्र भांबू : बीजेपी यहां से राजेंद्र भांबू को भी प्रत्याशी बना सकती है। भांबू ने पिछले चुनाव में भी टिकट मांगा था। टिकट नहीं मिलने पर वह निर्दलीय लड़े थे। उन्होंने 42 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे। वहीं बीजेपी प्रत्याशी को 57 हजार वोट मिले थे।
बनवारी लाल सैनी : पार्टी माली वोट बैंक को साधने के लिए जिला अध्यक्ष बनवारी लाल सैनी को भी मौका दे सकती है।
यह भी किसी से काम नहीं : विश्वंभर पूनिया, जिला प्रमुख हर्षिनी कुलहरी और पिछला चुनाव उदयपुरवाटी से मात्र 412 वोटों से हारने वाले शुभकरण चौधरी भी संभावित प्रत्याशियों में शामिल हैं।
कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार :-
ओला परिवार : झुंझुनूं से विधायक रहे बृजेंद्र ओला के सांसद बनने के बाद खाली हुई सीट पर ओला परिवार से ही तीन दावेदार माने जा रहे हैं। बृजेंद्र ओला की पत्नी और पूर्व जिला प्रमुख राजबाला ओला, सांसद पुत्र अमित ओला दावेदारी कर रहे हैं। ओला की पुत्रवधू आकांक्षा ओला का नाम भी दावेदारों में है।
दिनेश सुंडा : झुंझुनूं के जिला अध्यक्ष दिनेश सुंडा भी दावेदारी कर रहे हैं। कांग्रेस का ओला विरोधी गुट भी सुंडा के नाम को आगे बढ़ा रहा है।


देवली-उनियारा : गुर्जर-मीणा और मूल ओबीसी पर दांव संभव :-
टोंक जिले की देवली-उनियारा विधानसभा सीट में सचिन पायलट के करीबी हरीश मीणा लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए थे। कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव में टोंक-सवाई माधोपुर से मैदान में उतारा। जहां उन्होंने दो बार के भाजपा सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया को हरा दिया।
बीजेपी के संभावित उम्मीदवार :-
राजेंद्र गुर्जर : बीजेपी के संभावित उम्मीदवारों में पूर्व विधायक राजेंद्र गुर्जर प्रबल दावेदारों में माने जा रहे हैं। राजेंद्र गुर्जर 2013 से 2018 के बीच यहां से विधायक रह चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने टिकट मांगा था, लेकिन पार्टी ने कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला को टिकट दे दिया।
विजय बैंसला : उम्मीदवारों में विजय बैंसला भी शामिल हैं। वे पिछला चुनाव 19 हजार वोट से हार गए थे। वहीं उनकी जगह पार्टी उनकी बहन सुनीता बैंसला को भी टिकट देने पर विचार कर रही है।
प्रभुलाल सैनी : पूर्व मंत्री व पार्टी में उपाध्यक्ष प्रभुलाल सैनी भी संभावित उम्मीदवारों में शामिल हैं। प्रभुलाल सैनी मूलत देवली-उनियारा के रहने वाले हैं। वे यहां से विधायक भी रह चुके हैं।
विक्रम गुर्जर : लोकसभा चुनाव में बीजेपी में शामिल हुए डॉ. विक्रम गुर्जर भी इस बार दौड़ में शामिल हैं।
कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार :-
उपचुनाव में हरीश मीणा के बड़े भाई पूर्व केंद्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा और बेटे भी दावेदारी कर रहे हैं। पूर्व विधायक रामनारायण मीणा और धीरज गुर्जर भी दावेदारों में हैं। इनके अलावा छात्र नेता नरेश मीणा दौसा के साथ-साथ देवली-उनियारा से भी दावेदारी कर रहे हैं।


खींवसर : त्रिकोणीय होगा मुकाबला :-
नागौर जिले की खींवसर विधानसभा सीट के उपचुनाव की सबसे ज्यादा चर्चा है। यहां पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। अभी तक कांग्रेस ने यहां आरएलपी से गठबंधन के कोई संकेत नहीं दिए हैं। यह सीट खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने के बाद खाली हुई थी।
भाजपा के संभावित उम्मीदवार :-
रेवंतराम डांगा : खींवसर उपचुनाव में भाजपा से रेवंतराम डांगा का नाम सबसे आगे है। डांगा ने 2023 विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल को जबरदस्त टक्कर दी थी। मात्र 2069 वोटों के नजदीकी अंतर से हार गए थे।
ज्योति मिर्धा : खींवसर में उपचुनाव के लिए भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. ज्योति मिर्धा का नाम भी चर्चा में है। ज्योति लोकसभा चुनाव में हार गई थीं। वे खींवसर विधानसभा में हनुमान बेनीवाल से 7 हजार वोटों से पीछे रहीं।
हापुराम चौधरी : डॉ. हापुराम चौधरी भी संभावित उम्मीदवारों में शामिल हैं। वे लंबे समय से पार्टी से टिकट मांग रहे हैं। पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं।
कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार :-
रघुवेंद्र मिर्धा : पार्टी में प्रदेश सचिव हैं। कांग्रेस के पूर्व मंत्री और नागौर विधायक हरेंद्र मिर्धा के बेटे हैं। वहीं कांग्रेस के कद्दावर नेता रामनिवास मिर्धा के पोते हैं।
बिंदु चौधरी : रघुवेंद्र के नाम पर सहमति नहीं बनती है तो पूर्व जिला प्रमुख बिंदु चौधरी को पार्टी प्रत्याशी बना सकती हैं। बिंदु चौधरी बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुई थी।


आरएलपी के संभावित उम्मीदवार :-
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) से हनुमान बेनीवाल अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को उम्मीदवार बना सकते हैं। इसके अलावा 2019 की तरह हनुमान एक बार फिर अपने भाई पूर्व विधायक नारायण बेनीवाल को भी मौका दे सकते हैं।


चौरासी : कांग्रेस-बीजेपी को जिताऊ प्रत्याशी की तलाश
भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के विधायक राजकुमार रोत के सांसद बनने के बाद डूंगरपुर जिले की चौरासी विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव होगा। चौरासी विधानसभा सीट पर BAP की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस एक बार फिर अपनी खोई हुई सियासी जमीन तलाशने में जुटी हुई हैं। दोनों ही पार्टियों के सामने यहां जिताऊ प्रत्याशी तलाशना चुनौती बनी हुई है। BAP के नेताओं ने जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी शुरू कर दी है।
भाजपा के संभावित उम्मीदवार :-
सुशील कटारा : पूर्व विधायक सुशील कटारा एक बार फिर चौरासी विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं। कटारा की संघ और भाजपा में पकड़ मजबूत है, लेकिन लगातार दो चुनाव हारने का टैग उनके लिए परेशानी भी खड़ी कर सकता है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस से भाजपा में आए चिखली के पूर्व प्रधान महेंद्र बरजोड़, सीमलवाड़ा से भाजपा के पूर्व प्रधान नानूराम परमार भी इस बार भारतीय जनता पार्टी से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं।
महेंद्रजीत सिंह मालवीया : इनके अलावा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए महेंद्रजीत सिंह मालवीया को भी पार्टी प्रत्याशी बना सकती है। हालांकि मालवीया बांसवाड़ा से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं।
कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार :-
कांग्रेस पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा या उनके परिवार में किसी अन्य सदस्य को मौका दे सकती है। भगोरा परिवार चौरासी विधानसभा क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखता है। ऐसे में अगर ताराचंद किसी कारण से चुनाव नहीं लड़ते हैं तो कांग्रेस उनके भतीजे रूपचंद भगोरा और बेटे महेंद्र भगोरा को उम्मीदवार बना सकती है।
बीएपी के संभावित उम्मीदवार :-
भारत आदिवासी पार्टी पोपटलाल खोखरिया को उम्मीदवार बनाने पर मंथन कर रही है। राजकुमार रोत के बाद खोखरिया चौरासी क्षेत्र में सबसे ज्यादा सक्रिय नेताओं में से एक हैं। उनकी पत्नी झोथरी पंचायत समिति की प्रधान हैं। इसके साथ ही आदिवासियों में भी खोखरिया की मजबूत पकड़ है। अगर उन्हें किसी कारण टिकट नहीं मिलता है तो चिखली क्षेत्र से अनिल और दिनेश को भी पार्टी मौका दे सकती है।


सलूंबर: बीजेपी के सामने सीट बचाने की चुनौती :-
प्रदेश में जिन 7 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। उनमें से केवल एक सीट सलूंबर बीजेपी के पास थी। यह सीट बीजेपी विधायक अमृतलाल मीणा की मौत के कारण खाली हुई है। ऐसे में बीजेपी के सामने अन्य 6 सीट कांग्रेस और अन्य दलों से छीनने के साथ ही अपनी सीट को बचाने की चुनौती है।
बीजेपी के संभावित उम्मीदवार :-
अविनाश मीणा : सहानुभूति लहर के चलते बीजेपी यहां से दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा के बेटे अविनाश मीणा को प्रत्याशी बना सकती है।
नरेंद्र मीणा : स्थानीय नेता नरेंद्र मीणा भी पिछले कई साल से यहां से टिकट की मांग कर रहे हैं। ऐसे में अविनाश के चुनाव नहीं लड़ने की स्थिति में उन्हें भी टिकट दिया जा सकता है।
यह भी किस काम नहीं : सेमारी पंचायत समिति के प्रधान दुर्गाप्रसाद मीणा, बीजेपी एसटी मोर्चा की उपाध्यक्ष सोनल मीणा और जया मीणा भी संभावित उम्मीदवारों में शामिल हैं।
कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार :-
सलूंबर सीट पर कांग्रेस लगातार तीन बार से हार रही है। इस सीट पर विधानसभा चुनाव हार चुके रघुवीर मीणा और उनकी पत्नी बसंती मीणा दावेदार हैं।


रामगढ़ : तीन दशक से दो परिवारों का राज अलवर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट कांग्रेस विधायक जुबैर खान के निधन के बाद खाली हुई है। 1990 से ही हिंदू-मुस्लिम के बीच उलझी इस सीट पर दो परिवारों का राज रहा है। इस सीट पर तीन बार ज्ञानदेव आहूजा और चार बार जुबैर खान विधायक रहे हैं। वहीं 2018 में जुबैर खान की पत्नी सफिया जुबैर यहां से विधायक रही थीं।
बीजेपी के संभावित उम्मीदवार :-
जय आहूजा : पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने ज्ञानदेव आहूजा के भतीजे जय आहूजा को यहां से प्रत्याशी बनाया था। वे तीसरे नंबर पर रहे थे। जय और ज्ञानदेव आहूजा दोनों संभावितों में शामिल हैं।
सुखवंत सिंह : बीजेपी से टिकट मांग रहे सुखवंत सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर दूसरे नंबर पर रहे थे। ऐसे में पार्टी सुखवंत सिंह को यहां से प्रत्याशी बना सकती है।
बनवारी लाल सिंघल : पूर्व विधायक बनवारी लाल सिंघल भी संभावित उम्मीदवारों में शामिल हैं। बनवारी लाल सिंघल केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के करीबी माने जाते हैं।
कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार :-
सफिया जुबैर : सहानुभूति लहर के चलते कांग्रेस पूर्व विधायक सफिया जुबैर को प्रत्याशी बना सकती है। सफिया 2018 में इस सीट से विधायक रह चुकी हैं।


बीजेपी : पैनल में 3 से 5 नाम शामिल :-
प्रदेश बीजेपी ने 7 सीटों पर पैनल तैयार करके केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दिया है। बताया जा रहा है कि हर सीट पर कम से कम 3 और अधिकतम 5 नाम शामिल किए हैं। हालांकि इस पैनल में केंद्रीय नेतृत्व भी अपने नाम शामिल सकता है।
उसके बाद पैनल में शामिल नामों को लेकर पार्टी एक अंतिम सर्वे करवाएगी। इस सर्वे में जो प्रत्याशी सबसे जिताऊ नजर आएगा, उसे टिकट मिलेगा। बताया यह भी जा रहा है कि पैनल में नाम शामिल करने से पहले पार्टी अभी तक 3 सर्वे करवा चुकी है।
कांग्रेस : सभी सीटों पर रायशुमारी पूरी की बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया में थोड़ा पीछे चल रही है। हालांकि कांग्रेस ने भी प्रत्याशी चयन को लेकर सभी सीटों पर रायशुमारी पूरी कर ली है। लेकिन, प्रत्याशियों के नामों का पैनल अभी तैयार नहीं किया है।
काबिले जिक्र है कि पहले भी कई बार ऐसे मौके आए, जब बीजेपी के बाद ही कांग्रेस ने अपने पत्ते खोले। ऐसे में इस बार भी उपचुनाव में कांग्रेस बीजेपी के बाद अपने प्रत्याशी घोषित कर सकती है।