रवि प्रकाश जूनवाल
हैलो सरकार ब्यूरो प्रमुख
नई दिल्ली । बढ़ती वैल्यूएशन, कंपनियों के कमजोर मुनाफे और घरेलू मांग की सुस्ती के चलते शेयर बाजार के निवेशकों के लिए यह समय सतर्कता बरतने का है। भारत के शेयर बाजार में कोविड-19 के बाद शुरू हुई तेजी का दौर अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है।

विशेषज्ञों का मानना है कि हर बुल या बेयर मार्केट लगभग पांच वर्षों में चरम पर पहुंचता है, और मार्च 2025 में यह बुल रन पांच साल पूरा कर लेगा। ऐसे में अब बाजार को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले प्रमुख कारक लगभग समाप्त हो चुके हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, कोविड के बाद कंपनियों के मुनाफे की गति उनकी आमदनी से कहीं अधिक तेज थी, लेकिन वित्त वर्ष 2025 तक आते-आते यह दोनों लगभग समान स्तर पर पहुंच गए हैं। मार्च 2025 की तिमाही में कंपनियों की मुनाफे की ग्रोथ 10 प्रतिशत से नीचे रही और पिछले आठ तिमाहियों से यही धीमा रुझान बना हुआ है। अर्थव्यवस्था में नकदी तो है, लेकिन वह मनी मल्टीप्लायर नहीं बन पा रही है। यानी मजबूत निर्यात, सरकारी खर्च में विस्तार और वेतन वृद्धि जैसे तत्वों की अनुपस्थिति के कारण पैसा बाजार में तेजी से घूम नहीं रहा है। मांग की ग्रोथ भी कई बाधाओं से जूझ रही है। भारत का निर्यात वैश्विक व्यापार युद्ध, भूराजनीतिक तनाव और चीन की डंपिंग नीतियों की वजह से दबाव में है।
कंपनियां अपने पूंजीगत खर्च और वेतन वृद्धि में कटौती कर रही हैं, जिससे फी कैश फ्लो तो बढ़ा है, लेकिन मांग पर प्रतिकूल असर पड़ा है। सरकार भी उधारी लेने से बच रही है और आमदनी में कोई बड़ा सुधार नहीं दिख रहा है। इन सभी कारणों से डोमेस्टिक डिमांड के लिए कोई ठोस इंजन नजर नहीं आ रहा। भारत का बाजार अब भी ऊंची वैल्यूएशन पर है। निफटी 500 का प्राइस-टू-बुक रेशियो 3.9× है और मार्केट कैप बनाम जीडीपी रेशियो 132 प्रतिशत के आसपास है, जो कि इसके दीर्घकालिक औसत से काफी अधिक है। ऐसे में आने वाले वर्षों में रिटर्न सीमित रह सकता है।