रवि प्रकाश जूनवाल
हैलो सरकार ब्यूरो प्रमुख

नई दिल्ली। आप याद करो उन दिनों को जब 2011 में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से चर्चा में आए अरविंद केजरीवाल 2 अक्टूबर 2012 को आम आदमी पार्टी बनाकर राजनीति में उतरे। 2013 के अंत में दिल्ली चुनाव लड़ा और 28 सीटें जीत कांग्रेस के साथ सरकार बना ली। हालांकि 49 दिन में इस्तीफा दे दिया। 2015 के चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। 2020 में भी पार्टी को 62 सीटें मिलीं।
जनता का भरोसा तोड़ दिया केजरीवाल ने –

गौरतलाप है कि अरविंद केजरीवाल एक्साइज पॉलिसी केस में नाम आने पर जेल जाना पड़ा। सीएम रहते, गिरफ्तार होने वाले पहले नेता बने। हालांकि अरविंद केजरीवाल कई मौकों पर यह कहते हुए दिखाई देते थे कि हिम्मत है तो मोदी सरकार मुझे गिरफ्तार करके दिखाएं। शायद केजरीवाल को इस बात का विश्वास था कि यदि मुझे मोदी सरकार किसी केस में गिरफ्तार कर लेती है तो दिल्ली की जनता प्रधानमंत्री आवास को घेर कर उसका जवाब मांगेगी, लेकिन गिरफ्तारी के बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। परंतु हकीकत कुछ और ही बयां कर गई। जेल से निकले तो यह कहकर सीएम पद छोड़ दिया कि जनता की अदालत में जाऊंगा। … और शनिवार को जनता ने फैसला सुना दिया। अब, हार के बाद केजरीवाल पहली बार विपक्ष के तौर पर जनता के बीच होंगे और भ्रष्टाचार जैसे आंदोलन को फिर से खड़ा करने की कोशिश करेंगे। दूसरी तरफ, केजरीवाल के सामने बड़ी चुनौती पार्टी को बचाने और आगे की दिशा तय करने की भी होगी।

क्या करेगी भाजपा सरकार –
दिल्ली के उपराज्यपाल ने सत्ता परिवर्तन के संकेत होते ही शनिवार रात को आदेश जारी कर दिया। आदेश के मुताबिक दिल्ली सरकार का सामान्य प्रशासन विभाग को भेजा था, जिसमें दिल्ली सरकार के शासन सचिवालय को सख्त हिदायत दी गई कि सचिवालय से बाहर सामान्य प्रशासन विभाग उसकी पूर्व अनुमति के बिना कोई फाइल, दस्तावेज, कंप्यूटर या ई-रिकॉर्ड नहीं ले जाया जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि आम आदमी पार्टी के सरकार के पिछले कार्यकाल में हुए गड़बड़ झाले खुलासा होगा और भ्रष्टाचार का महातांडव देश की जनता को देखने को मिलेगा। ऐसी परिस्थितियों उत्पन्न होने पर इस बात का सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है कि आम आदमी पार्टी के लगभग सभी मंत्री और विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार और घूसखोरी के नए केस दर्ज हो सकते हैं।