फिर तो सारा जयपुर राज घराने का हो जाएगा – सुप्रीम कोर्ट

0
30
Oplus_131072

हैलो सरकार लीगल एडवाइजरी

सुप्रीम कोर्ट ने दिया कुमारी की याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा ऐसे तो सारा जयपुर आपका हो जाएगा। जयपुर राजघराने ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। जयपुर राजघराने ने याचिका दाखिल कर जयपुर के टाउन हॉल को अपनी संपत्ति बाताकर मुकदमा दर्ज किया है। जिसकी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जयपुर राजघराने के वंशज के रूप में टाउन हॉल पर राजपरिवार ने दावा किया है। राजस्थान हाईकोर्ट के उनके खिलाफ फैसला सुनाया था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में पद्मिनी देवी और दिया कुमारी की तरफ से कहा गया, राज्य सरकार टाउन हॉल की जगह म्यूजियम बनना चाहती है। यह सरकारी नहीं राजपरिवार की संपत्ति है। इस निर्माण को नहीं रोका गया तो सरकार का अधिकार हो जाएगा।

याचिकाकर्ता के वकील हरीश सालवे ने दलील दी। यह मामला कानूनी पेचीदगियों से भरा है। इसमें तीन महत्वपूर्ण मुद्दे संविधान के अनुच्छेद 362 और 363 में पूर्व शासकों और रजवाड़ों के विशेषाधिकार से जुड़े हैं। हैं। इन राजे रजवाड़ों का अपना इतिहास हैं। यह एक संधि है, जिसमें केंद्र सरकार पक्षकार नहीं है। जयपुर और बीकानेर शासकों के बीच जयपुर राजपरिवार की संधि हुई थी। हरीश सालवे के इस तर्क पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आप आपस में ऐसा अनुबंध करते हैं। बिना भारत सरकार को पक्षकार बनाए, आप कैसे इस तरह से चुनौती दे सकते हैं। इस तरह से तो पूरा जयपुर आपके पक्षकार का हो जाएगा। हर राजा रजवाड़ा सभी सरकारी संपतियों पर अपना दावा पेश करेगा।

पुरानी रियासतों के वंशज कहेंगे, सारी संपत्तियां उनकी हैं। कोर्ट ने कहा आप कहते हैं, भारत सरकार इस कॉन्ट्रैक्ट में पक्षकार नहीं था। इसलिए अनुच्छेद 363 लागू नहीं होगा।

आखिर टाउनहॉल का क्या विवाद है ???

साल 1949 में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और भारत सरकार के बीच एक समझौता रियासत के विलय को लेकर हुआ। इसके तहत टाउन हॉल सहित कुछ संपत्तियां सरकारी उपयोग के लिए दी गई थी। उसके बाद 2022 में गहलोत सरकार आई। राजस्थान सरकार ने टाउन हॉल को म्यूजियम बनाने का फैसला किया। इसको लेकर शाही परिवार नाराज हो गया, राजपरिवार ने आपत्ति जताई। 2014 से 2022 तक कई नोटिस और शिकायतों के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज परिवार के खिलाफ फैसला सुना दिया।क्षजिसको लेकर जयपुर राजघराना सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। जिसमें दो जजों की बेंच ने यह टिप्पणी की, अभी सुनवाई चल रही है। देखना होगा सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला करता है। जब भारत स्वतंत्र हुआ था, जो राजा रजवाड़े भारत में शामिल हुए थे। एक समझौते के तहत उनकी निजी संपत्तियों को उन्हें अधिकार में दिया गया था। बाकी रियासत का हिस्सा संघ में विलय हो गया था। राजा रजवाड़ों को प्रिवीयर्स के रूप में एक निश्चित राशि देने का समझौता विलय पक्ष में हुआ था। राजा रिजवाड़ों को कुछ विशेष अधिकार दिए गए थे। उस समय की विलय संचि में राजाओं की निजी संपत्ति, जिसमे राज परिवार का महल, जो जमीन उनके नाम पर थी। गहने, रत्न, आभूषण वगैरा उनको अधिकार में दे दिए गए थे। समझौते के तहत बाकी सारी रियासत और उसकी संपत्तियां संघ में विलय हो गई थी। 1971 में 26 वें संविधान संशोधन के द्वारा सभी राजे रजवाड़ों को मिले विशेष अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। प्रिवीपर्स बंद कर दिया गया था। जिसके कारण उस समय राजे-रजवाड़ों कांग्रेस से विद्रोह कर जनसंघ में चले गए थे। कांग्रेस पार्टी में विद्रोह हो गया था।


नैतिकता के आधार पर मंत्री पद से इस्तीफा !!!!

1990 के बाद राम मंदिर विवाद को लेकर जिस तरह से पुराने इतिहास के आधार पर मुकदमे बाजी शुरू हुई। पिछले एक दशक में राजे रजवाड़ों के वंशजो ने मुकदमेबाजी कर सरकारी संपत्ति को हथियाना शुरू कर दिया है। दिया कुमारी राजस्थान सरकार की उप मुख्यमंत्री हैं जयपुर राजघराने की वंशज होने के कारण वह भी टाउन हॉल और अन्य संपत्तियों पर कब्जा करना चाहती हैं। कुछ इसी तरह के विवाद अन्य रियासतों के वंशजों ने भी कोर्ट में दायर किए हैं। इस मामले में केंद्र सरकार को पार्टी नहीं बनाकर याचिका कर्ता ने केंद्र एवं राज्य सरकार और संविधान को धोखा देने की कोशिश की है। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात पकड़ ली। सुप्रीम कोर्ट की जो टिप्पणी आई है। उससे आभास होता है, जयपुर राजघराने द्वारा राजस्थान की सत्ता में उप-मुख्यमंत्री के पद पर होते हुए जिस तरह से धोखाधड़ी करने का प्रयास किया है। सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई के दौरान विशेष सतर्कता वरतने की जरूरत है। राजस्थान सरकार में मंत्री रहते हुए दिया कुमारी को इस तरह के मुकदमे में पार्टी नहीं बनना चाहिए था। यदि बनी थी तो नैतिकता के आधार पर उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना था। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से हजारों वर्ष पुराने इतिहास, विवाद और परंपरा के आधार पर न्यायालयों में मुकदमे दाखिल किए जा रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here