स्वामी अवधेशानंद जी गिरि ने जीवन सूत्र माला में बताते हैं कि किसी से कुछ बोलने से पहले सोच-विचार जरूर करें। हमें बात करते समय विनम्र रहना चाहिए। हमारी बातों में सत्यता, मधुरता और प्रियता होनी चाहिए। वाणी से हमारे संस्कार, विचार, पूर्वज, वंश, परंपरा, चरित्र की जानकारी मिलती है। इसलिए हमारे विचार और बात करने का तरीका सुंदर होना चाहिए।
ये पूरा संसार एक ही ब्रह्म का विस्तार है। यहां जितनी भी विविधताएं, भिन्नताएं दिखाई देती हैं, वे सभी एक ही परमात्मा का विस्तार हैं। इसलिए हमसे अलग कोई नहीं है, हमारे लिए पराया कोई भी नहीं है। दान करना, दूसरों की रक्षा करना, अतिथि का आदर करना, मान-सम्मान देना, ये सभी एक यज्ञ की तरह ही हैं। जो लोग ये यज्ञ करते हैं, उन्हें भगवान की कृपा मिलती है।
अवसरों का आना-जाना लगा रहता है। हमारे आलस के कारण अच्छे अवसर हाथ से निकल जाते हैं। वह समय जिसमें हमें महान बनना था, जो समय हमें ऊंचाइयां देने आया था, उस समय को हम आलस की वजह से खो देते हैं। हमें आलस से बचना चाहिए और जो अवसर प्राप्त हैं, उनका लाभ लेना चाहिए। समय का सम्मान करें।
जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनमें प्रेम, करुणा, त्याग, संयम, अनुराग, विनम्रता, भक्ति जैसे गुण थे। ये सभी सद्गुण हमारे अंदर भी हैं, लेकिन इन्हें जगाना होगा। जिस दिन हम इन गुणों को जगाने का पक्का संकल्प ले लेंगे, उस दिन हमारे अंदर भी ये सद्गुण जाग जाएंगे।
उन लोगों को सफलता और सिद्धि मिलती है जो आत्मविश्वासी हैं। जिनके पास इंद्रियों का संयम है, चरित्र बल है और जो सत्य के मार्ग पर चलते हैं, वे सफल जरूर होते हैं। जो लोग झूठे हैं या सत्य जानते नहीं है, उन्हें सफलता नहीं मिल पाती है। लक्ष्य को सर्वोपरि रखें और सच के साथ रहें, तभी जीवन में आगे बढ़ पाएंगे।