रवि प्रकाश जूनवाल
हैलो सरकार ब्यूरो प्रमुख
बिलासपुर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्त डिप्टी रेंजर पर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर न्यूनतम वेतन देने के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने पाया कि दंड लगाने से पहले याचिकाकर्ता को जांच रिपोर्ट नहीं दी गई, साथ ही कई प्रक्रियागत खामियां भी कार्रवाई के दौरान की गई।

गौरतलब है कि सेवानिवृत्त डिप्टी रेंजर जीएल मिश्रा ने राज्य सरकार और वन विभाग के अधिकारियों के खिलाफ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में बताया कि जब वे 1988 में वे वनपाल थे तब जटगा उत्तर बिलासपुर डिवीजन के कूप “सी” में बांस की कटाई के कार्यों की निगरानी कर रहे थे। उनकी देखरेख में काम करने वाले मजदूरों की कथित गलती के कारण हुए बांस को निर्धारित क्षेत्र के बाहर तक काट दिया गया। यह शिकायत आई कि 344 पेड़ों को अवैध रूप से काटा गया था। इस आधार पर उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई। उन्हें जांच रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराए बिना, उनके वेतनमान को न्यूनतम तक कम करने का दंड लगाया और उनकी विभागीय अपील खारिज कर दी गई। उन्होंने इस निर्णय को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाई कोर्ट ने माना नियम अनुसार आरोपी अधिकारी का पक्ष सुनना जरूरी —
सुनवाई में कोर्ट ने पाया कि राज्य सरकार इस बात का कोई सबूत देने में विफल रही कि दंड आदेश जारी होने से पहले याचिकाकर्ता को जांच रिपोर्ट दी गई थी। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जांच अधिकारी ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए अनुशासनात्मक प्राधिकारी को रिपोर्ट प्रस्तुत की है। कार्रवाई रिपोर्ट की एक प्रति और उसके विरुद्ध अभ्यावेदन करने का अवसर आरोपी को दिया जाना चाहिए। ऐसा न करना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है। कोर्ट ने 20 अगस्त 1992 के राज्य सरकार के परिपत्र का भी हवाला दिया, जिसमें यह अनिवार्य किया गया है कि कोई भी दंड लगाने से पहले आरोपी अधिकारी को अपना पक्ष और अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
विभाग को प्रक्रिया कर पुनर्विचार करने के निर्देश —
न्यायालय ने प्रक्रियागत अनियमितताओं का हवाला देते हुए 31 दिसंबर, 1991 के दंड आदेश और उसके बाद 7 अप्रैल, 2018 के अपीलीय आदेश को रद्द कर दिया। मामले को अनुशासनात्मक प्राधिकारी को वापस भेज दिया गया और निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता को जांच रिपोर्ट सौंपने और उसे अपना पक्ष दाखिल करने की अनुमति देने के बाद मामले पर पुनर्विचार किया जाए।