मीनेश चन्द्र मीना
हैलो सरकार ब्यूरो प्रमुख
जयपुर। सरकार द्वारा लोगों को आरोग्य बनाने के लिए इस समय निशुल्क दवाई योजना चलाई जा रही है, परंतु वास्तविक रूप से रोगी व्यक्तियों को सरकारी अस्पताल में निशुल्क दवा योजना के तहत दवाइयां दी जा रही है क्या वह दवाइयां गुणवत्ता की दृष्टि से सही है या गलत, इस बात को विरले लोग ही जानते हैं।
मुफ्त दवा का कड़वा सच
साढ़े 5 साल में कैंसर, खून-हार्ट संबंधी 795 दवाओं के सैंपल फेल, 12% पर ही केस, कार्रवाई के नाम पर 90 दिन ही लाइसेंस सस्पेंड किए गए इससे आगे और कोई सख्त कार्यवाही नहीं।
गौर तलब है कि राजस्थान में ‘निशुल्क दवा योजना’ में लाखों लोगों को करोड़ों रुपए की दवाएं फ्री दी जा रही हैं। सुनने में योजना बहुत अच्छी है, लेकिन इसके पीछे का सच बेहद ‘कड़वा’ है। साल 2019 से जून 2024 तक कैंसर, खून, हार्ट और एंटीबायोटिक से जुड़ी दवाओं के 795 सैंपल फेल हुए हैं। चिंताजनक स्थिति यह है कि जब तक ड्रग विभाग सैंपल लेता है, जांच रिपोर्ट आती है, तब तक लाखों लोग दवाएं खा चुके होते हैं। इधर, विभाग ने कार्रवाई के नाम पर सिर्फ 12 फीसदी केस ही फाइल किए हैं। इनमें भी नाममात्र के लाइसेंस निलंबित किए गए। नियमों में सख्ती नहीं होने और अधिकारियों की लापरवाही से आरएमएससीएल के जरिए सप्लाई होने वाली दवाओं के सैंपल फेल हुए। सच सामने लाने के लिए दैनिक भास्कर ने पांच साल के आंकड़े खंगाले। सबसे अधिक दवाएं बद्दी में बनी हैं। दिल-खून से जुड़ी दवाओं के सैंपल सबसे अधिक फेल हुए हैं। पेन किलर, एंटीबायोटिक, स्टेराइड, एंटी एमेटिक, हॉर्मोनल, कैंसर, लंग्स सहित दवाओं के सैंपल भी खरे नहीं उतरे। उसके बावजूद भी सरकार गुणवत्ता पर खरी नहीं उतरने वाली दवा निर्माता कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।
दवाओं का गड़बड़झाला
प्राप्त जानकारी के अनुसार ब्लड से जुड़ी दवाएं सबसे खराब दवाएं रही है। ब्लड संबंधी दवाएं 165, एंटी बायोटिक बैक्टीरियल/फंगल 115, पेन किलर, स्टेरॉयड 104, लंग्स/सीओपीडी/कफ सिरप 103, गैस्ट्रो /एंटी अल्सर/एल्बेंडाजोल 70, मल्टी विटामिन/सप्लीमेंट 69, डायबिटीज 45, एंटी डिसइनफेक्टेड /सेप्टिक / इंप्लीमेंट्री 30, एंटी एमेटिक (घबराहट एंजायटी) 29, हार्मोनल 13, वेटरनरी 9, कैंसर 3, अन्य 40 खराब रही है। किस प्रकार कुल 795 दवाएं खराब मरीज को वितरित की जा रही है।
खराब दवाओं का वर्षवार गड़बड़झाला
वर्ष 2019 में 120 सैंपल फेल हुए। इसी प्रकार वर्ष 2020 में 160, वर्ष 2021में 90 सैंपल, वर्ष 2022 में 183 सैंपल, वर्ष 2023 में 121 सैंपल और वर्ष 2024 के जून तक 6 माह में 121 सैंपल फेल हो चुके हैं। इस प्रकार कुल सैंपल 5 साल 6 महीने में 795 सैंपल फेल हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त 557 मामलों मे जांच जारी है। जबकि 97 मामलों की केस फाइल तैयार है और 73 मामले कोर्ट में विचाराधीन है जबकि 51 मामले शून्य हो चुके हैं और 17 मामले के केस बंद हो चुके हैं।
स्वास्थ्य के खिलवाड़ का एक और नमूना
एक बैच में 1 लाख गोली, रिपोर्ट आने तक खप जाती हैं। सैंपल लेने से रिपोर्ट तक आने में करीब एक महीने लगते हैं। ऐसे में खराब दवाएं ड्रग वेयर हाउस और अस्पताल से लेकर मरीजों तक पहुंच चुकी होती हैं। एक बैच में कम से कम एक लाख गोलियां होती हैं।
दवाइयां की बानगी
राजस्थान में बनी 91 और दिल्ली एनसीआर की 27 दवाएं फेल हुईं। मजे की बात है कि सबसे अधिक 338 (42%) सैंपल हिमाचल प्रदेश और 134 सैंपल उत्तराखंड में बनी दवाओं के फेल हुए हैं। राजस्थान के 91, गुजरात के 51, दिल्ली- एनसीआर के 27 सैंपल फेल हुए हैं। सिक्किम, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, महाराष्ट्र, कनार्टक, जम्मू-कश्मीर सहित अन्य राज्यों के 154 सैंपल फेल हुए हैं।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही मानव जीवन पर भारी
चौंकाने वाली बात है कि हर महीने सैंपल फेल होने के बावजूद विभाग सख्ती नहीं कर रहा है। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साढ़े पांच साल में 12 फीसदी मामलों में केस फाइल किए गए। कुछ लाइसेंस 90 दिन के लिए सस्पेंड हुए। इनमें डिस्ट्रिब्यूटर्स लाइसेंस भी शामिल हैं। इसकी अतिरिक्त और कोई मामला नहीं बनता है, जबकि कानून के अनुसार सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है।
नहले पे दहला : महंगी दवाइयां के सैंपल नहीं लिए जाते
आपको जानकर ताज्जुब होगा महंगी दवाइयों के सैंपल नहीं लिए जाते है। जांच पड़ताल से सामने आया है कि आरएमएससीएल में सप्लाई महंगी दवाइयों के सैंपल नहीं के बराबर होते हैं। सैंपल नहीं लेने का मुख्य कारण कैंसर जैसी बीमारियों के इंजेक्शन और टेबलेट एक से तीन लाख रुपए तक के आते हैं। अब एक दवा का भी सैंपल लेना होता है तो पूरा पैसा जमा कराना होता है। यही वजह से सैंपल नहीं लिए जाते।
क्या कहते हैं कर्ता-धर्ता
आरएमएससीएल मुखिया के नेहा गिरी कहना है कि आरएमएससीएल सभी दवाओं की टेस्टिंग कराता है। पास होने पर ही अस्पतालों में भेजी जाती हैं। औषधि भंडारों और अस्पतालों से नमूने औषधि नियंत्रण अधिकारी लेते हैं। इनकी रिपोर्ट आरएमएससीएल को भी आती है। रिपोर्ट में औषधि अमानक है तो उसके उपयोग को रोक दिया जाता है और स्टॉक रिजेक्ट कर दिया जाता है। फर्म के विरुद्ध निविदा शर्तों के अनुरूप डिबारिंग और वित्तीय कार्यवाही की जाती है। औषधि नियंत्रण विभाग कानूनी कार्रवाई करता है।