सुप्रीम कोर्ट के जज के बेटे को अतिरिक्त महाधिवक्ता बनाने के लिए किया नियमों में संशोधन : नियुक्ति के आदेश जारी

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रवि प्रकाश जूनवाल
हैलो सरकार ब्यूरो प्रमुख
नई दिल्ली/जयपुर। राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर 10 वर्ष के अनुभव वकालत के अनुभव के बजाय 5 वर्ष के वकालत का अनुभव रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज के बेटे की नियुक्ति की है।


सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश के बेटे हैं पदमेश मिश्रा :-
गौरतलब है कि राजस्थान सरकार ने पांच साल के अनुभव वाले अधिवक्ता पदमेश मिश्रा को नियुक्त किया है। आपको बता दें , पदमेश मिश्रा सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश के बेटे हैं। पदमेश मिश्रा की नियुक्ति के लिए सरकार ने राजस्थान की लिटिगेश पॉलिसी में भी संशोधन किया है।
नियमों को बदलकर अनुभव की बाध्यता को किया समाप्त :-
पहले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता की नियुक्ति के लिए 10 साल की वकालत का अनुभव होना जरूरी था। सरकार ने पदमेश मिश्रा को नियुक्ति देने के लिए इन नियमों को बदलकर अनुभव की बाध्यता को हटा दिया है।


20 अगस्त को बनाया पैनल लॉयर फिर बनाया एएजी  :-
राज्य सरकार ने अधिवक्ता पदमेश मिश्रा को 20 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार का पैनल लॉयर नियुक्त किया था। लेकिन उसके तीन दिन बाद ही 23 अगस्त को सरकार ने नया आदेश निकालकर मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति दे दी।
क्या कहती है राजस्थान लिटिगेशन पॉलिसी :-
राजस्थान लिटिगेशन पॉलिसी-2018 के अनुसार पैनल लॉयर के लिए पांच साल का अनुभव जरूरी है। इसमें पदमेश मिश्रा पात्रता रखते थे। वे 2019 से वकालत में है। ऐसे में वे 5 साल के अनुभव क्राइटेरिया को पूरा करते थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति के लिए 10 साल के अनुभव की बाध्यता थी। उन्हें नियुक्ति देने के लिए सरकार ने पहले नियमों में संशोधन किया। उसके बाद उन्हें अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति दे दी।


नियमों में संशोधन बनाम चट मंगनी पट ब्याव :-
राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जज बेटे को अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति हेतु ” चट मंगनी पट ब्याव ” वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए स्टेट लिटिगेशन पॉलिसी-2018 के अध्याय 14 में संशोधन करते हुए एक नया बिंदू 14.8 जोड़ा है। इसके अनुसार अब राज्य सरकार किसी भी अधिवक्ता को किसी भी पद पर किसी भी समय नियुक्ति दे सकती है। यह नियुक्ति अधिवक्ता की विशेषज्ञता के आधार पर होगी।
इस संशोधन के लिए सर्कुलेशन के माध्यम से मंत्रिमण्डल की मंजूरी ली गई है। वहीं, मंत्रिमंडल की मंजूरी के अगले दिन 23 अगस्त को ही विधि विभाग ने इसे लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी।
रास नहीं आ रही हैं नियुक्त बीजेपी और संघ से जुड़े अधिवक्ताओं को :-
सुप्रीम कोर्ट में पदमेश मिश्रा की नियुक्त से लेकर हाईकोर्ट में विरोध शुरू हो गया है। यह विरोध बीजेपी लीगल सेल से जुड़े अधिवक्ता कर रहे हैं। बीजेपी लीगल सेल, हाईकोर्ट इकाई के सह संयोजक राजेन्द्र सिंह राघव ने बताया- सरकार सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट में पैराशूट एंट्री से नियुक्तियां दे रही है। इन नियुक्तियों में बीजेपी और संघ से जुड़े अधिवक्ताओं को दरकिनार किया जा रहा है, जो अच्छा नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि जो वकील बीजेपी और संघ की विचारधारा रखते है, जो लगातार कई सालों से पार्टी का काम कर रहे हैं, उन्हें नियुक्ति से वंचित रखा जा रहा है। यह परिपाटी ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट जज के बेटे, कहीं हाईकोर्ट जज, आईएएस के रिश्तेदारों को नियुक्ति दी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि हमने इसका विरोध शुरू कर दिया है। विरोध की आगामी रणनीति के लिए संघर्ष समिति का भी गठन किया हैं।
विधि मंत्री के बेटे की नियुक्त विवाद थमते ही फिर हुआ दूसरा बखेड़ा :-
राज्य सरकार के विधि मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे मनीष पटेल को भी सरकार ने 12 मार्च को हाईकोर्ट जोधपुर पीठ में अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति दी थी। इसका भी जमकर विरोध हुआ था। कांग्रेस ने इस मामले को विधानसभा में भी उठाया था। लेकिन विधि मंत्री और सरकार ने इस नियुक्ति को सही ठहराया था। अभी गत 24 अगस्त को अधिवक्ता मनीष पटेल ने अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद से इस्तीफा दे चुके। मामला अभी शांत नहीं हुआ फिर नया बछड़ा खड़ा होगा देखते हैं इस बखेड़े का क्या परिणाम आएंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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