निर्मला सीतारमण के खिलाफ FIR का आदेश : कोर्ट ने माना इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए हुई जबरन वसूली

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रवि प्रकाश जूनवाल
हैलो सरकार ब्यूरो प्रमुख
बेंगलुरु। कर्नाटक राज्य के बेंगलुरु की एक स्पेशल कोर्ट ने 27 सितंबर को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया है। वित्त मंत्री पर इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए जबरन वसूली का आरोप लगाया गया है।
गौरतलब है कि जनाधिकार संघर्ष परिषद (JSP) के आदर्श अय्यर ने बेंगलुरु में शिकायत दर्ज कर केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की थी। याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। अदालत ने बेंगलुरु के तिलक नगर पुलिस स्टेशन को FIR दर्ज करने का आदेश दिया। अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को होगी।


सबसे पहले शिकायत अप्रैल 2024 को हुई थी, शिकायत में जेपी नड्डा का भी नाम :-
आपको बता दे, जनाधिकार संघर्ष परिषद ने अप्रैल में 42वीं ACMM कोर्ट में दायर याचिका में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, ED अधिकारियों, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं, तत्कालीन भाजपा कर्नाटक अध्यक्ष नलिन कुमार कटील, बीवाई विजयेंद्र के खिलाफ शिकायत की थी।
शिकायतकर्ता ने शिकायत में उल्लेख किया कि अप्रैल 2019 से अगस्त 2022 तक व्यवसायी अनिल अग्रवाल की फर्म से लगभग 230 करोड़ रुपए और अरबिंदो फार्मेसी से 49 करोड़ रुपए चुनावी बॉन्ड के जरिए वसूले गए। इसके सबूत न्यायालय में पेश कर दिए हैं।
इधर, इस खबर के सामने आने के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने केंद्रीय वित्त मंत्री के इस्तीफे की मांग की है।
” कर्नाटक भाजपा के नेता सीतारमण के इस्तीफे के लिए कब प्रदर्शन और मार्च करेंगे। अगर निष्पक्ष जांच होती है, तो PM मोदी और कुमारस्वामी को भी इस्तीफा देना चाहिए।
– सिद्धारमैया, कर्नाटक CM
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- स्कीम असंवैधानिक
काबिले गौर है कि 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- यह स्कीम असंवैधानिक है। बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने SBI और चुनाव आयोग को आदेश दिया था कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा पूरा डेटा सार्वजनिक करे।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद 21 मार्च को डेटा सामने आया। इसमें पता चला था कि 2018 से 2023 तक देश की 771 कंपनियों ने 11,484 करोड़ के बॉन्ड खरीदे थे। ट्रेडिंग कंपनियों ने सबसे ज्यादा 2955 करोड़ रुपए सियासी दलों को दिए।


शिकायतकर्ता ने शिकायत में इस बात का उल्लेख किया कि डेटा सार्वजनिक होने के बाद जुलाई 2024 में भी कॉर्पोरेट्स और राजनीतिक दलों के बीच लेन-देन की जांच SIT से करवाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी।
वित्त मंत्री ने लोकसभा चुनाव से पहले कहा था- स्कीम वापस लाएंगे
लोकसभा चुनाव से पहले वित्त मंत्री ने बॉन्ड स्कीम को दोबारा लाने का संकेत दिया था। निर्मला सीतारमण ने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा कि अगर हम सत्ता में आए तो इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फिर से वापस लाएंगे। इसके लिए पहले बड़े स्तर पर सुझाव लिए जाएंगे। हालांकि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने उनके इस बयान पर कहा था अब भारतीय जनता पार्टी लोगों को और कितना लूटना चाहती है।


कैसे हुई थी इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत :-
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है। जिसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है। स्कीम के अनुसार बताया गया था कि अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर मसला माना था।


आखिर मामला कोर्ट में कैसे पहुंचा : क्या है पूरा मामला
इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।
बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
आखिर विवाद की असली जड़ क्या है :-
दरअसल 2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। दूसरी ओर इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं। और कुछ हद तक हुआ भी ऐसा ही, जैसा कि लोगों ने समझा।

जितनी मर्जी उतना चंदा :-
हालांकि कुछ लोगों का यह भी आरोप है कि इस स्कीम को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लाया गया है। इससे ये घराने बिना पहचान उजागर हुए जितनी मर्जी उतना चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं। लेकिन धीरे-धीरे सत्ता पक्ष ने इस अवैध वसूली का जरिया बना लिया।