राज्यसभा के 265वें सत्र के समापन पर माननीय सभापति श्री जगदीप धनखड़ का वक्तव्य

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रवि प्रकाश जूनवाल
हैलो सरकार ब्यूरो प्रमुख


नई दिल्ली। पक्ष और विपक्ष की काफी नोंक-झोंक के बाद राज्यसभा के 265वें सत्र का समापन शुक्रवार को हो गया। इस अवसर पर भारत के उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति श्री जगदीप धनखड़ ने अनोखी अंदाज में शैतान को संबोधित किया, जो इस प्रकार से है —


राज्यसभा के माननीय सभापति श्री जगदीप धनखड़ का वक्तव्य :-
माननीय सदस्यगण, भोजनावकाश के पश्चात सदन की कार्यवाही तीन बार स्थगित की गई। यह आशा और अपेक्षा थी कि विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे जी और माननीय सदस्य श्री घनश्याम तिवारी जी की उपस्थिति में मेरे कक्ष में सौहार्दपूर्ण ढंग से हल हो जाने वाले मुद्दे के बाद सदन सुचारु रूप से चलेगा, लेकिन सदस्य सदन से बाहर चले गए। इसके पूर्व उपरोक्त संसद सदस्यों को मेरे कक्ष में और मेरे समक्ष यह पूरा अवसर मिला कि वे संसद के अपने दशकों पुराने अनुभवों के साथ विषयों को हल कर लें। वे सौहार्दपूर्ण तरीके से मेरे कक्ष से विदा हुए थे। मैंने स्पष्ट रूप से यह विचार मन में रखा कि इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से शांत कर दिया गया है और अब इस पर और विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
श्री जयराम रमेश ने बिना अनुमति के उठाया मुद्दा :-
अगले दिन या उसके बाद कुछ नहीं हुआ, एक अंतराल के बाद, अचानक आज, प्रश्नकाल शुरू होने से ठीक पहले, श्री जयराम रमेश ने बिना अनुमति के यह मुद्दा उठाया। तब मैंने संकेत दिया कि यदि अभी भी कोई मुद्दा है, तो मैं इस मामले पर अपने कक्ष में विचार करूंगा।
बड़े पैमाने पर लोगों की सेवा करने के लिए नियुक्त हुए हैं सदस्य :-
इसके परिणामस्वरूप एक ऐसा दृश्य उत्पन्न हुआ जिसका पूरा सदन गवाह बना और पूर्व प्रधानमंत्री श्री एचडी देवेगौड़ा सहित बहुत वरिष्ठ सदस्यों को अपनी पीड़ा व्यक्त करने का अवसर मिला। मैंने सदन की कार्यवाही, इस बात को ध्यान में रखते हुए स्थगित की कि जब सदन के सभी सदस्य उपस्थित होंगे, तो सदन बेहतर तरीके से कार्य करेगा। चूंकि सदन के प्रत्येक सदस्य ने संविधान के तहत शपथ ली है और सभी सदस्य बड़े पैमाने पर लोगों की सेवा करने के लिए नियुक्त हुए हैं, इसलिए दुर्भाग्य से, तीनों दलीलों पर अपेक्षित प्रत्युत्तर नहीं मिला।
ऊर्जा और विशेषज्ञता का उपयोग भारत के कल्याण के लिए – धनखड़
मैं सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए काम करना जारी रखूंगा, ताकि उन्हें अवसर मिले, वे अपना संवैधानिक कर्तव्य निभा सकें, अपनी ऊर्जा और विशेषज्ञता का उपयोग भारत के कल्याण के लिए बड़े पैमाने पर लोगों की सेवा करने के लिए कर सकें, जहां मानवता का छठवां हिस्सा निवास करता है।
सदन की गौरवशाली परंपरा की अपील :-
मैं उन सदस्यों से अपील करता हूं, जो यहां उपस्थित नहीं हैं, वे अपने भीतर गहराई से विचार करें कि उनके द्वारा लिए गए निर्णय और सदन से उनके बहिर्गमन द्वारा उच्च सदन, ज्येष्ठ सदन की गौरवशाली परंपरा पर क्या प्रभाव पड़ेगा। उन्हें यह सोचना है कि इस सदन के सदस्यों से लोगों की क्या अपेक्षा है और राष्ट्र के विकास के लिए कैसे जीना है। जब सदन स्थगित किया जा रहा था, तो मुझे बाहर विभिन्न टीवी चैनलों पर सदस्यों की प्रतिक्रिया देखने का अवसर मिला।
लोकतंत्र के मंदिर से बाहर न जाए –
मैं सभी लोगों को यह बताना चाहता हूं कि इस संस्था के सम्मान के लिए, इस सदन के प्रत्येक सदस्य की गरिमा के सम्मान के लिए, मैंने यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी सावधानी बरती है कि संसद सदस्य के लिए जो व्यवहार, आचरण उचित नहीं है, वह लोकतंत्र के मंदिर से बाहर न जाए। इसलिए, संसद टीवी, जिसके साथ इस सदन में होने वाली सभी घटनाएं जुड़ी हुई हैं, को मैं स्व-नियमन के अधीन करता रहा हूं। यह देखते हुए कि विमर्श फैलाने की कोशिशें  की जा रही हैं और जो कुछ पावन नहीं हो सकता है, जो तथ्य पर आधारित नहीं है, वह उन सदस्यों द्वारा बोला जा रहा है जिनके पास कुछ अनुभव है। इसलिए, मैं यह सुनिश्चित करना चाहूंगा कि देश के लोगों को वास्तविकता का पता चले।
मेरा कोई व्यक्तिगत विवाद नहीं – धनखड़
हालांकि, मैं प्रत्येक सदस्य का बहुत सम्मान करता हूं और किसी के साथ मेरा कोई व्यक्तिगत विवाद नहीं है, लेकिन मैं बिना किसी आधार के असंयमित भाषा से बहुत आहत हूं, मीडिया के पास जाना, सबका ध्यान खींचना, मुझे यकीन है कि इन सब से देश के सभी लोग उसी बात पर ध्यान देंगे, जो उन्हें दिखाया जा रहा है। मेरा कक्ष, राज्यसभा के अध्यक्ष का कक्ष, वरिष्ठ सदन, उच्च सदन, पर यह ठप्पा लगाया गया है कि वहां जो कुछ भी होता है, वह बंद दरवाजे के पीछे होता है। यह गलत सूचना है कि मैंने श्री तिवारी के साथ जो चर्चा की थी, वह केवल उनके साथ अकेले में थे। यदि सत्य के पंख होते हैं, तो राष्ट्र उड़ान भरता है।
जोरदार भागीदारी के लिए सभी सदस्य रहे तैयार :-
यदि असत्य, जो सत्य से बहुत दूर है, जोर पकड़ता है, तो यह परेशान करने वाला है। यह सुनिश्चित करने का हमारा संकल्प कि राज्य सभा के पवित्र परिसर को लोकतंत्र को अस्थिर करने की जमीन नहीं बनने दिया जाएगा, ऐसा सभी सदस्यों द्वारा व्यक्त किया गया है और यह स्वागत योग्य है। इसलिए मुझे कोई संदेह नहीं है कि आज उपस्थित नहीं होने वाले सदस्यों से मेरी अपील उन्हें आत्ममंथन करने, आत्मनिरीक्षण करने, राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य के बारे में सोचने, संविधान के तहत अपनी शपथ को ध्यान में रखने और आगामी सत्रों में रचनात्मक तरीके से जोरदार भागीदारी के लिए तैयार करेगी।
कर्तव्य किसी भी व्यक्तिगत चोट या भावनाओं से ऊपर :-
सत्र न चलने के दौरान, मैं काम करना जारी रखूंगा, प्रत्येक सदस्य तक पहुंचने की कोशिश करूंगा, मुझे जो गहरी ठेस पहुंची है उसे नजरअंदाज करते हुए क्योंकि कर्तव्य किसी भी व्यक्तिगत चोट या भावनाओं से ऊपर है। मैं आप सभी से भी आग्रह करूंगा कि कृपया इस सदन के सभी सदस्यों से संपर्क करें, ताकि हम सब इस सदन में कुछ मुद्दों पर, राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर, दलीय स्वार्थ से ऊपर उठकर, देश और दुनिया को यह संदेश दें कि यह देश, जो सबसे जीवंत, क्रियाशील लोकतंत्र है, जो लोकतंत्र की जननी है, जो सबसे पुराना और सबसे बड़ा लोकतंत्र है, वह पूरे विश्व के लिए आशा का स्रोत बना रहेगा। इन अपेक्षाओं, अनुरोध, विनती और आग्रह के शब्दों के साथ, मैं आवश्यक एजेंडा को आगे बढ़ाऊंगा।